कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो By Sher << ये सोचते ही रहे और बहार ख... ज़मीं का रिज़्क़ हूँ लेकि... >> कोई भी दिल में ज़रा जम के ख़ाक उड़ाता तो हज़ार गौहर-ए-नायाब देख सकता था Share on: