क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ By गर्मी, Sher << मैं निबल तन्हा न इस दुनिय... क्यूँ न आ कर उस के सुनने ... >> क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ क्या तू नें समझा है आशिक़ इस क़दर है मोम का Share on: