कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की By Sher << लगाए पीठ बैठी सोचती रहती ... कोई मौसम मेरी उम्मीदों को... >> कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की मैं चूक जाऊँ तो वो उँगलियाँ जला लेगा Share on: