लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे By Sher << चलो अपनी भी जानिब अब चलें... दामन के दाग़ अश्क-ए-नदामत... >> लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे 'ज़फ़र' वाइज़ हूँ मैं और ख़िदमत-ए-इस्लाम करता हूँ Share on: