लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई By Sher << राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये ... कुछ बदन की ज़बान कहती थी >> लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई फिर तिरी पहली नज़र याद आई Share on: