लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न By Sher << बड़ी ही अँधेरी डगर है मिय... जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक म... >> लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न बाद मुद्दत फिर हुआ ज़ौक़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे Share on: