जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें By Sher << लखनऊ में फिर हुई आरास्ता ... आग भी बरसी दरख़्तों पर वह... >> जलाए रक्खूँ-गी सुब्ह तक मैं तुम्हारे रस्तों में अपनी आँखें मगर कहीं ज़ब्त टूट जाए तो बारिशें भी शुमार करना Share on: