लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर By Sher << ये समझ के माना है सच तुम्... यही सूरत वहाँ थी बे-ज़रूर... >> लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर मैं हूँ वो क़तरा-ए-शबनम कि हो ख़ार-ए-बयाबाँ पर Share on: