लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को By Sher << इक तेज़ रा'द जैसी सदा... हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़... >> लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को उसे दीवाने वहशत में तिरा बंद-ए-क़बा समझे Share on: