ऐ 'नक़्श' कर रहा था जिन्हें ग़र्क़ नाख़ुदा By Sher << तुम्हारे दर्द से जागे तो ... किसी तरह न तिलिस्म-ए-सुकू... >> ऐ 'नक़्श' कर रहा था जिन्हें ग़र्क़ नाख़ुदा तूफ़ाँ के ज़ोर से वो सफ़ीने उभर गए Share on: