मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था By Sher << बुझी रूह की प्यास लेकिन स... न-जाने कैसी निगाहों से मौ... >> मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था फिर इस चटान में इक फूल ने शिगाफ़ किया Share on: