मैं और ज़ौक़-ए-बादा-कशी ले गईं मुझे By Sher << सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभ... जो दिल-ओ-ईमाँ न दें नज़रा... >> मैं और ज़ौक़-ए-बादा-कशी ले गईं मुझे ये कम-निगाहियाँ तिरी बज़्म-ए-शराब में Share on: