मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को By Sher << नक़्श होती जाती हैं लाखों... हम समझते हैं आज़माने को >> मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को कि सहल भी नहीं शायान-ए-आरज़ू होना Share on: