नक़्श होती जाती हैं लाखों बुतों की सूरतें By Sher << बाज़ू पे रख के सर जो वो क... मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जु... >> नक़्श होती जाती हैं लाखों बुतों की सूरतें क्या ये दिल भी ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ हो जाएगा Share on: