मैं जानता हूँ कि जंगलों में कटेंगी कैसे तवील रातें By Sher << मैं उसे यकसूई से पढ़ ही न... लुत्फ़ की इन पे कोई ख़ास ... >> मैं जानता हूँ कि जंगलों में कटेंगी कैसे तवील रातें मुझे ज़रूरत नहीं पड़ेगी तुम्हारी बे-फ़ैज़ रौशनी की Share on: