मैं उसे यकसूई से पढ़ ही नहीं पाया कभी By Sher << मर जाएँ तो रह जाते हैं हम... मैं जानता हूँ कि जंगलों म... >> मैं उसे यकसूई से पढ़ ही नहीं पाया कभी ज़िंदगी के लफ़्ज़ में कितने जहाँ आबाद थे Share on: