मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त By Sher << ज़िंदगी और ज़िंदगी की याद... अमीर-ज़ादों से दिल्ली के ... >> मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त मैं चाहता हूँ कि वो ख़्वाब फिर बहम किए जाएँ Share on: