मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ By Sher << बहार-ए-हुस्न ये दो दिन की... याद रखना ही मोहब्बत में न... >> मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ उसी रफ़्तार से नज़दीक साहिल होता जाता है Share on: