मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस By Sher << कल जिन्हें छू नहीं सकती थ... ज़िंदगी हम से तो इस दर्जा... >> मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस क्या उन्ही दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था Share on: