मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में By Sher << कहाँ तक उस की मसीहाई का श... ये और बात कि रंग-ए-बहार क... >> मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में इक अज़दहा चराग़ की लौ को निगल गया Share on: