मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए By Sher << है अजीब शहर की ज़िंदगी न ... तालिब-ए-दोस्त अलग रहते है... >> मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए चीख़ता रहता है सहरा-ए-बदन के अंदर Share on: