मैं तो हस्ती को समझता हूँ सरासर इक गुनाह By Sher << माना कि बज़्म-ए-हुस्न के ... लुत्फ़-ए-बहार कुछ नहीं गो... >> मैं तो हस्ती को समझता हूँ सरासर इक गुनाह पाक-दामानी का दा'वा हो तो किस बुनियाद पर Share on: