माना कि बज़्म-ए-हुस्न के आदाब हैं बहुत By Sher << मंज़िल-ए-हस्ती में इक यूस... मैं तो हस्ती को समझता हूँ... >> माना कि बज़्म-ए-हुस्न के आदाब हैं बहुत जब दिल पे इख़्तियार न हो क्या करे कोई Share on: