मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ By Sher << वो उतर गए थे जो पार ख़ुद ... बुलंद आवाज़ से घड़ियाल कह... >> मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ जुदा न जिस्मों से 'अनज़र' कभी भी साए हुए Share on: