मैं ये तो नहीं कहता कि बशर दावा-ए-ख़ुदाई कर बैठे By Sher << नींद का हल्का गुलाबी सा ख... पुकारा क़ासिद-ए-अश्क आज फ... >> मैं ये तो नहीं कहता कि बशर दावा-ए-ख़ुदाई कर बैठे फिर भी ग़म-ए-इश्क़ से इंसाँ में कुछ शान-ए-ख़ुदा आ जाती है Share on: