मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर By Sher << बरसात का मज़ा तिरे गेसू द... ये ग़म नहीं है कि हम दोनो... >> मक़्सद-ए-ज़ीस्त ग़म-ए-इश्क़ है सहरा हो कि शहर बैठ जाएँगे जहाँ चाहो बिठा दो हम को Share on: