मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं By Sher << क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज... सब किताबों के खुल गए मअ&#... >> मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं वही अंदाज़-ए-जहान-ए-गुज़राँ है कि जो था Share on: