मत बैठ आशियाँ में परों को समेट कर By Sher << चाँदनी रातों में चिल्लाता... मर ही कर उट्ठेंगे तेरे दर... >> मत बैठ आशियाँ में परों को समेट कर कर हौसला कुशादा फ़ज़ा में उड़ान का Share on: