मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ By Sher << चुप हो गए तेरे रोने वाले एक आसेब है हर इक घर में >> मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ हर हसीं मंज़र बहुत जल्दी बदल जाता है क्यूँ Share on: