मेरे हर मिस्रे पे उस ने वस्ल का मिस्रा लगाया By Sher << मिरे सारे बदन पर दूरियों ... मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब र... >> मेरे हर मिस्रे पे उस ने वस्ल का मिस्रा लगाया सब अधूरे शेर शब भर में मुकम्मल हो गए थे Share on: