मेरी ग़ज़ल को मेरी जाँ फ़क़त ग़ज़ल न समझ By Sher << गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन ... मैं आदमी हूँ कोई फ़रिश्ता... >> मेरी ग़ज़ल को मेरी जाँ फ़क़त ग़ज़ल न समझ इक आइना है जो हर दम तिरे मुक़ाबिल है Share on: