गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात By Sher << ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेक... मेरी ग़ज़ल को मेरी जाँ फ़... >> गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात लेकिन अपनी तो इसी ज़ुल्मात से थी ज़िंदगी Share on: