मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें By Sher << क्या ग़म अगर यज़ीद रहा इक... ये दाढ़ी मोहतसिब ने दुख़्... >> मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें इन आँखों को तो बस आता है बरसातें बड़ी करना Share on: