मुकम्मल दास्ताँ का इख़्तिसार इतना ही काफ़ी है By Sher << तुम्हारी बज़्म भी क्या बज... कहानी अपनी अपनी अहल-ए-महफ... >> मुकम्मल दास्ताँ का इख़्तिसार इतना ही काफ़ी है सुलाया शोर-ए-दुनिया ने जगाया शोर-ए-महशर ने Share on: