तुम्हारी बज़्म भी क्या बज़्म है आदाब हैं कैसे By Sher << ज़बान ओ दहन से जो खुलते न... मुकम्मल दास्ताँ का इख़्ति... >> तुम्हारी बज़्म भी क्या बज़्म है आदाब हैं कैसे वही मक़्बूल होता है जो गुस्ताख़ाना आता है Share on: