मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर' By Sher << तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहत... मैं आसमान-ए-मोहब्बत से रु... >> मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर' पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है Share on: