अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने By बोसा, Sher << हज़ार रंग-ब-दामाँ सही मगर... ये कैसा तनाज़ा है कि फ़ैसल... >> अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने कि लब-ए-ज़ूद-पशीमाँ को मुकरने न दिया Share on: