क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी' By Sher << ज़ब्त-ए-नाला से आज काम लि... यूँ तो जल बुझने में दोनों... >> क्यूँ शेर-ओ-शायरी को बुरा जानूँ 'मुसहफ़ी' जिस शायरी ने आरिफ़-ए-कामिल किया मुझे Share on: