न आबशार न सहरा लगा सके क़ीमत By Sher << फ़लक पर उड़ते जाते बादलों... मिरे ख़्वाबों की चिकनी सी... >> न आबशार न सहरा लगा सके क़ीमत हम अपनी प्यास को ले कर दहन में लौट आए Share on: