न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है By Sher << रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर... मोहब्बत के मरीज़ों का मुद... >> न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है तमाम शहर में चर्चा तिरे शबाब का है Share on: