न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी By Sher << तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ ... पार दरिया-ए-मोहब्बत से उत... >> न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी हवा से मेरा बिगाड़ क्या है जो शम-ए-तुर्बत बुझा रही है Share on: