इक तिरी याद गले ऐसे पड़ी है कि 'नजीब' By Sher << ग़ुंचा-ए-गुल के सबा गोद भ... पूछो ज़रा ये चाँद से कैसे... >> इक तिरी याद गले ऐसे पड़ी है कि 'नजीब' आज का काम भी हम कल पे उठा रखते हैं Share on: