नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर By Sher << कितना आसान था बचपन में सु... बड़े घरों में रही है बहुत... >> नामूस-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-इंसाँ में ढाल कर सूती है रात जाम से सूरज निकाल कर Share on: