नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ By Sher << ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के... ग़रज़ न फ़ुर्क़त में कुफ़... >> नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ हज़ारों बन गए काबे जबीं मैं ने जहाँ रख दी o foolish priest the offering of love you do not know a thousand mosques did appear wherever i did bow Share on: