पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश By Sher << ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती ... धूप के साथ गया साथ निभाने... >> पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश अब मय-कदा भी सैर के क़ाबिल नहीं रहा Share on: