पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच By Sher << पी जाते हैं ज़हर-ए-ग़म-ए-... नई ज़िंदगी के नए मक्र ओ फ... >> पाप करो जी खोल कर धब्बों की क्या सोच जब जी चाहा धो लिए गंगा-जल के साथ Share on: