पत्ते नहीं चमन में खड़कते तिरे बग़ैर By बसंत, Sher << हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-श... 'मुसहफ़ी' अब इक ग... >> पत्ते नहीं चमन में खड़कते तिरे बग़ैर करती है इस लिबास में हर-दम फ़ुग़ाँ बसंत Share on: