पत्थर जैसी आँखों में सूरज के ख़्वाब लगाते हैं By Sher << फिर रेत के दरिया पे कोई प... किनारों से जुदा होता नहीं... >> पत्थर जैसी आँखों में सूरज के ख़्वाब लगाते हैं और फिर हम इस ख़्वाब के हर मंज़र से बाहर रहते हैं Share on: