पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँ By Sher << वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम... इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैरा... >> पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँ अब के बरस भी इस के सिवा कुछ नहीं किया Share on: