'क़मर' अफ़्शाँ चुनी है रुख़ पे उस ने इस सलीक़े से By Sher << गर्म अज़-बस-कि है बाज़ार-... मुझ से लाखों ख़ाक के पुतल... >> 'क़मर' अफ़्शाँ चुनी है रुख़ पे उस ने इस सलीक़े से सितारे आसमाँ से देखने को आए जाते हैं Share on: